विचार तत्व




कोई भी व्यक्ति यदि कभी थोड़ा ध्यान दें तो उसे स्पष्ट अनुभव होगा की उसके मस्तिष्क में निरंतर विचार आते रहते है । कितना ही इन्हें रोका जाये वे चलते ही रहते है । हाँ इतना अवश्य ही की यदि थोड़ी देर तक हम श्वास न लें तो उस अवधि में विचार रुक से जाते है ।

पर जीवन के लिये श्वास लेना अनिवार्य है । तब विचारों का चलता रहना भी अनिवार्य है । सोने पर भी इनका तांता नहीं रुकता , तरह तरह स्वप्न आते ही रहते है । हमारी बेहोशी की हालत में भी हमारे बिना जाने विचारों का आवा गमन होता ही रहता है । क्यूंकी श्वास के साथ विचार आते है । श्वास अति है बाहरी वातावरण से अतः बाहरी वातावरण में यानी ईथर में व्याप्त वायु में विचारों के शब्दों की ध्वन्यात्मक तरंगें विद्यमान होनी चाहिये ।  साथ ही विचार तरंगों का अस्तित्व मस्तिष्क में भी गर्भ होना चाहिये जो श्वास से आयी तरंगों से प्रभावित हो जाती है । हमारे द्वारा बोल – चल में जो भी शब्द निकलते रहते है । उनकी भी ध्वन्यात्मक तरंगें आकाश में व्याप्त होती रहती है । यह क्रम सदा से चलता आ रहा है ।

इन विचार तरंगों के अनेक रूप अनुभव में आते रहते है । पर प्रमुख रूप से चार रूप अधिक व्यवहार में आते है ।

  1.      वे विचार जो अपने साथ उन युक्तियों को लिये होते है , जिनसे विचार पूर्णता को प्राप्त हो सकें ।

  2.      वे विचार जो अपना थोड़ा बहुत अस्तित्व तो रखते है पर पूर्णता की ओर अग्रसर नहीं हो पते । 

  3.      वे विचार जो उभरते तो रहते है पर परतंत्र से होते है और दूसरे सहायक विचारों के योग देने पर ही वे आगे बढ़ते है ।

  4.      वे विचार जो अनर्गल होते है जो अपना अस्तित्व स्थायी नहीं रखते कभी कुछ कभी कुछ आते जाते रहते है ।
इन विचारों से प्रभावित हो कर मैं पन कर्म करने के प्रेरित होता है । जिस प्रकार का विचार उभरता है उसी प्रकार की चेष्टा मैं पन से होती है और उसी के अनुकूल आवश्यकतानुसार मैं पन शरीर के अंगों का उपयोग करता है ।

इन सब बातों से स्पष्ट है की शरीर की संचालन व्यवस्था का उत्तरदायी शासक DNA है।
DNA के निर्मित शरीर का उपयोग मैं पन करता है । मैं पन को कर्म करने के लिये  प्रेरित करने वाले विचार है । बाहरी विचार तरंगें व्यक्ति के मस्तिष्क में विद्यमान विचार विचार तरंगो को प्रभावित करती हैं ।
 तब DNA से निर्मित शरीर के अंगों से तदनुकूल आचरण होता है । अब यह जान लेना भी आवश्यक है की शरीर की संचालन व्यवस्था करने की क्षमता DNA को कौन प्रदान करता है । ऐसे ही शरीर को उपयोग में लाने की मैं पन को कौन शक्ति प्रदान करता है । इसी प्रकार ईथर में विचार तरंगे सदा ही विद्यमान रहती है ,

इसका मूल श्रोत क्या हैं ? साथ ही इन व्याप्त विचार तरंगों के आधार पर यूनिट माइंड को कर्म करने की क्षमता कौन देता है ? इन सब प्रश्नों का एक ही उत्तर हो सकता है की प्राणशक्ति सब को क्षमता देती है ।


 क्यूंकी प्राणशक्ति ही मानव के जीवन की आधार भूतसत्ता है । बिना प्राण के व्यक्ति का जीवन नहीं अतः प्राणशक्ति को सर्वत्र व्याप्त सत्ता होना चाहिये । तभी वह व्यक्ति के सब अंगों की आधार – शक्ति हो सकती है । 
साथ ही व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक इसी की सत्ता सर्वेसर्वा है । भ्रूण गर्भ में इसी सत्ता के आधार से आता है । और जब भ्रूण जन्म लेता है तो जन्म के साथ ही इसी सत्ता का कार्य अनुभव होता है । नवजात शिशु श्वास लेता है और उससे असपष्ट संकल्प उभरते रहते है जिनसे वह हाथ पैर आदि हिलाता है हँसता है , रोता है तथा अनेकों चेष्टयें करता रहता है । यदि प्राण न हो तो भ्रूण जड़वत हो जावेगा । अतः प्राणशक्ति का महत्व सबसे अधिक होना चाहिये ।   

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