अथ श्री तारा पच्चीसी



आज बुद्ध पुर्णिमा हैं । गौतम बुद्ध उच्च कोटी के साधक थे । ये उन साधकों में आते हैं जो ईश्वर का अवतार कहलतें हैं । जो समाज को दिशा नहीं दिखते बल्कि हाथ पकड़ कर उनको मोक्ष और ज्ञान की प्राप्ति करवाते हैं । बुद्ध माँ तारा के उच्च कोटी के साधक थे । आज का दिन माँ तारा का भी हैं । इसलिए मैं " श्री तारा पच्चीसी"  प्रस्तुत कर रहा हूँ जो एक कल्याण कारी पाठ हैं । 






नमो - नमो जय तारिणी माता , विश्व जननि मंगल मुद गाता ।
आदि शक्ति अनन्त जग माता , निज इच्छा से खेल रचाया ॥
हूंकार है बीज तुम्हारा , जिससे फैल रहा उजियारा ।
सूर्य चन्द्र में जोत तुम्हारी , सकल काम्ना पूरणकारी ॥
अष्ठ पाश को काटनहारी ,तारक भाव सदा सुखकारी ।
महानील विकराल विशाला , लपटे अंग भुजंग कराला ॥
पाँच प्रेत मस्तक पर राजे , शिखा मूल अक्षोभ्य विराजे  ।
चार हाथ मुद मंगलकारी , शत्रु दलन दुख भंजनहारी ॥
नरक कपाल माला गल सोहे , रूप निरख जग मोहित होवे ।
भगाकार भाग रूप भवानी , जयति जयति तारा महारानी ॥
जटा जूट माथे पर राजे , शव पर देवी स्वयें विराजे ।
बुद्ध तथागत जो अधिकारी , तिन पर तव महिमा अति भारी ॥







वृजनील सुंदर तुम बाला , हो हूं भक्त पर परम कृपाला ।
राम रूप धरि रावण मारा , कृष्ण रूप धरि कंस पछारा ॥
दो भुज चार चतुर्भुज रूपा , तारा रूप स्वरूप अनुपा ।
चिंतामणि सिद्धि संसारा , मातु तुम्हीं जग पारावारा ॥
अखिल एक ब्रह्मांड निकाया , करहू सदा भक्तन पर दाया ।
प्रलय काल में जब महारानी , फैला जल चहूँ और भवानी ॥
नीलाजल सब और सुहावन , ब्रहमदिक सब कर स्तवन  ।
तारा – तारा जय जय तारा , देव रटें सब नाम तुम्हारा ॥
तब कृपाल भई मातु भवानी , सष्टि करण की इच्छा ठानी ।
रूप अनेक मातु तब धारे , देव सहित सब मनुज संवारे ॥
चार वर्ण सृष्टि उपजाई , वेदन तब महिमा अतिगाई ।
तारा मंत्र जपे जो कोई , कबहुँ ताय विपदा नहीं होई ॥
शनैः शनैः तारा पद पाई , जग सुख भोग परम पद जाई

॥ जय तारिणी माता ॥

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25 May 2013 at 13:13

.बहुत सुन्दर प्रस्तुति .आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .

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25 May 2013 at 15:14

धन्यवाद शिखा जी

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