प्राण शक्ति का शेष भाग .....




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प्राण शक्ति से सब जुड़े हैं । संकल्प मिश्रित वायु , अग्नि , जल , पृथ्वी , पेड़ की जड़ , तना , मोटी डलियाँ , छोटी डलियाँ , टहनियों से जुड़ा एक पत्ता । विवेचन से स्पष्ट है की प्राण शक्ति ही प्रत्येक पत्ते से लेकर वायुतत्व तक सबकी आधार है । अतः प्रत्येक संकल्प का आधार भी प्राणशक्ति है और प्राणशक्ति के सहारे ही उसका जन्म , उसकी वृद्धि और उसका अन्त होता है । चूँकि वायु जो श्वास के रूप में प्राणीमात्र का आधार है और सर्वत्र व्याप्त है अतः वायु का आधार भूत प्राणीशक्ति को भी सर्वत्र व्याप्त होना चाहिये और उसे सबकी आधार भूत सत्ता कहना सर्वथा उचित है । विज्ञान की दृष्टि से भी अब इसी तथ्य की पुष्टि की जाती हैं । की ऊर्जा ही सब पदार्थों का आधार है । ऊर्जा का ही पर्याय प्राणशक्ति को कहा जा सकता हैं । वैज्ञानिक कहता है की प्रत्येक पदार्थ अणुओं से बना है और अणु परमाणुओं से बना है परमाणु इलेक्ट्रॉन से बना है । इलेक्ट्रॉन बना है प्रोटोन और नूट्रोन से और इनका आधार है ऊर्जा का प्रवाह जिसका विकिरण कभी तरंगों के समान व्यवहार करता है कभी कण के रूप में इस प्रकार ऊर्जा व्याप्त है । पदार्थ में अणु में , परमाणु में , इलेक्ट्रॉन में प्रोटोन और नूट्रोन में । इस दृष्टि कोण से जो पदार्थ हमे दिखता है वह लुप्त हो जाता हैं । और ऊर्जा ही ऊर्जा दिखती है ।
यह कहना असंगत नहीं है की प्राणशक्ति ही सब का आधार है । उसी सत्ता से संकल्प पैदा होते है । उसी सत्ता से अपनी क्षमता के अनुसार जन्म लेते है । वृद्धि करते है और समाप्त होकर नवीन रूप धारण कर लेते है । संक्षेप में  प्रत्येक अस्तित्व का मूल आधार प्राणशक्ति है । इस सब से स्पष्ट है की DNA को शरीर की संचालन व्यवस्था करने की क्षमता प्राणशक्ति ने प्रदान की है । ऐसे ही मैंपन को शरीर के उपयोग करने की क्षमता देने वाली शक्ति प्राणशक्ति ही है । इसी प्रकार प्राणशक्ति के आधार पर ही ईथर में विचार तरंगे सदा विधमान रहती है तथा बाहरी विचार तरंगे प्राणशक्ति के आधार से ही एक एक मस्तिष्क की तरंगों को प्रभावित का शरीर के अंगों को कर्म करने को प्रवृत्त करती है । यहाँ तक तो स्पष्ट समझ में आता है की प्राणशक्ति आधारभूत सत्ता है । और उसी का विस्तार ही विश्व का रूप है जो बनता है बढ़ता है और लुप्त हो कर पुनः नवीन रूप धारण करता है । किन्तु प्राणशक्ति का भी कोई न कोई आधार होना चाहिये । इस तथ्य की प्रत्यक्ष जानकारी अभी तक किसी को उपलव्ध नहीं हो सकी है । किन्तु इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता की आधार तो अवश्य होना चाहिये , भले ही उसकी जानकारी मन , बुद्धि से परे ही क्यों न हो । हाँ जितनी भी हमें जानकारी होती जायेगी वो ऊर्जा की बड़ी बहने ही सिद्ध होंगी । मूलाधार फिर भी अद्रश्य बना रहेगा । अतः मूलाधार को सत्ता को ही परमात्मा कहा जाता है जो तर्क से सिद्ध है । हाँ प्राणशक्ति यानि ऊर्जा का अस्तित्व स्पष्ट है जिसकी सत्ता के आधार से उत्पत्ति , सृजन और संहार कार्य होता हैं । इसी प्रकार प्रकृति समस्त कार्य नियमानुसार कर रही है । अब प्रश्न उठता है की क्या प्रत्येक व्यक्ति इस सभी जानकारी पर विचार विमर्स करने को आकर्षित हो सकता है ? इसका उत्तर यही समझ में आता है की प्राणशक्ति से निरन्तर निकालने वाले अनन्त संकल्पों में से जो संकल्प पूर्णता को प्राप्त करने की सामाग्री साथ लेकर आये है उनकी ही इस और रुचि होगी और वे ही धीरे धीरे मंथन करते करते पूर्णता को प्राप्त हो सकते है । पूर्णता की ओर उत्तरोत्तर विकास करने वाले संकल्प भी विभिन्न प्रकार के अनुभव में आते हैं । उनकी शैलियाँ भी भिन्न भिन्न होती हैं । अतः उनके अनेक अनेक स्तर हो सकते है ।

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