प्रश्न और उत्तर









जय तारणी माँ _/\_ ....... बहुत समय से लोगो द्वारा कुछ प्रश्न पूछे जा रहे हैं ये वो प्रश्न हैं जीना उत्तर जानना लगभग हर व्यक्ति चाहता हैं .... सब के अनुभव अलग अलग होते हैं । इसलिए उत्तर का रूप भी प्रथक होता है पर सब उत्तरों का मूल एक ही होता हैं प्रथकता केवल शब्दों में होती हैं । मैं इन  प्रश्नो का और उनका उत्तर आप सब के साथ रखना चाहता हूँ ... जिस से मेरे और आप सब के उत्तर मिलकर उन लोगो की जिज्ञासा शांत कर सकें । 



प्रश्न :- 1 - अध्यात्म क्या हैं ?


उत्तर :-  प्रत्येक प्राणी के स्वभाव को अध्यात्म कहते हैं । प्रत्येक जीव के मस्तिष्क में जो विचार उठते है उन्हीं विचारों से उसके प्रत्येक कार्य होते हैं । साधक के लिए उसके प्रातः से लेकर संध्या तक सभी कार्य ही अध्यात्म हैं । क्योंकि वह पूर्ण रूप से शक्ति के समर्पित है । साधक द्वारा जो भी कार्य हो रहे हैं सब भगवती के ही कार्य हो रहे हैं । वह तो केवल निमित्त मात्र है ऐसी विचारधारा उसके मस्तिष्क में नित्य ही बढ़ती रहेगी । जिससे उसके द्वारा किये गये सभी कार्य ही उत्तमता से होंगे और उसका मस्तिष्क भी संतुलित रहेगा । इस प्रकार समस्त कार्य ही आध्यात्मिक हाए जायेंगे । व्यक्ति हो आध्यात्मिक कहेंगे ।



प्रश्न :- 2 - देवता की परिभाषा क्या हैं ?


उत्तर :- 2 -  वास्तविक देवता तो प्रत्येक इंद्रिय की शक्ति का नाम है । किन्तु आध्यात्मिक भाव से अपने यहाँ पर जगह जगह मंदिर बनाये गये है । उन्हें देखकर हमें इस बात की याद आती रहे की प्रत्येक काम प्रभुसत्ता का हो रहा हैं । इसी उद्देश से घर में लोग भगवान की तस्वीरें रख लेते है की घर के हर एक कार्य करने में यह ध्यान रहे की " मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ प्रत्येक कार्य प्रभु सत्ता से हो रहा हैं ।


प्रश्न :- 3 -  ज्ञान , भक्ति , कर्म का वास्तविक संबंध क्या है  ? 


उत्तर :- 3 - ज्ञान कहते हैं जानकारी को ,  भक्ति कहते है प्रेमभाव को और कार्य करने को कर्म कहते है । बिना किसी जानकारी के किसी में भक्ति भाव आना असंभव है  और बिना प्रेमभाव  के उनके द्वारा बताये हुये कार्य ठीक से नहीं हो सकते । इसलिये ज्ञान , भक्ति व कर्म के संबंध आपस में जुड़ें हुये है । या यों कहिये की ज्ञान , भक्ति  व कर्म तीनों अलग अलग नहीं एक ही है । 


प्रश्न :- 4    क्या आत्मा परमात्मा में मिल सकती है  ?


उत्तर :- 4 -  परमात्म - सत्ता सब जगह  व्याप्त है और वह अविभाजित है । इसलिये आत्मा को परमात्म में मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता जैसे सात घड़े एक साथ रखें हों तो सूर्य का प्रतिबिम्ब उनसभी में दिखाई देगा और उनमें से एक घड़े को फोड़ दो तो सूर्य का प्रतिबिम्ब उस घड़े से लुप्त हो जायेगा , यदपि सूर्य सर्वत्र ही व्याप्त है । इस प्रकार जिस घड़े को भी तोड़ोगे उसी में सूर्य का प्रतिबिम्ब नहीं देखेगा जबकि सूर्य अपनी जगह स्थित है उसमें हेरफेर नहीं । ऐसे ही आत्मा सब जगह व्याप्त है उस में हेरफेर नहीं । 


प्रश्न :- 5 - साधक , साधना देने का अधिकारी कब होता हैं ?


उत्तर :- 5 - साधक , साधना देने का अधिकारी तब होता हैं जब उसे साधना में पैर के अँगूठे से लेकर सिर की चोटी तक शक्ति का संवेदन अनुभव हो और फिर वैसे ही सिर से लेकर पैर तक वापिस जाना अनुभव हो । वेग के समय एक हाथ दूसरे हाथ को यदि स्पर्श करें तो दूसरे हाथ में स्पंदन होने लगे । इस प्रकार की क्रियाएँ साधक को जब होने लगेंगी तब उसे अन्दर से अपने आप इस प्रकार की इच्छा उत्पन्न होगी की अब तुम साधना में श्रद्धालु भक्तों को बैठा सकते हो 



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