श्री नीलकण्ठ स्तोत्रम्


श्री नीलकण्ठ स्तोत्रम्




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ध्यान
श्री नीलकण्ठ बालार्कायुत तेजसं धृतजटाजूटेन्दु खण्डोज्जवलं,
नागेन्द्रैः कृत भूषणै जपवटीं शूलं कपालं करैः। खट्वाङ्गं दधतं त्रिनेत्र विलसत् पञ्चाननं सुन्दरं,
व्याघ्रत्वक् परिधानमब्जनिलयं श्री नीलकण्ठं भजे॥  श्री नीलकण्ठ स्तोत्रम्

श्री गणेशाय नमः।

अस्य श्री नीलकण्ठस्तोत्रस्य  ब्रह्माऋषिरनुष्टुप् छन्दः, श्री नीलकण्ठ
सदाशिवो देवता, ब्रह्मबीजं, पार्वती  शक्तिः , शिव इति कीलकं, मम काय जीव  रक्षणार्थे , भुक्ति मुक्ति सिद्धयर्थे , चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्ध्यर्थे , सकलारिष्ट विनाशार्थे  श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे जपे, पाठे विनियोगः।

नमो नीलकण्ठाय श्वेत शरीराय नमः  सर्पमालाऽलंकृत भूषणायनमः। भुजंग परिकराय नागयज्ञोपवीतायनमः अनेक काल मृत्यु विनाशनाय नमः। युग युगान्त काल  प्रलय प्रचण्डाय नमः। ज्वलन्मुखाय नमः। दंष्ट्रा कराल घोररूपाय नमः। हुं हुं हुं फट्  स्वाहा ज्वालामुख मन्त्र करालायनमः। प्रचण्डार्क सहस्त्रांशु प्रचण्डाय नमः। कर्पूरामोदपरिमलाङ्ग सुगन्धिताय नमः।  इन्द्रनील महानील वज्रवैडूर्य मणि माणिक्य  मुकुट भूषणायनमः। श्री अघोरास्त्रमूलमन्त्राय नमः ह्रां स्फुर स्फुर ह्रीं स्फुर स्फुर  हूँ स्फुर स्फुर अघोर घोरतररूपाय नमः।  रथ रथ तत्र तत्र चट चट कह कह मद मद मदनदहनाय नमः श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्राय नमः ज्वलन मरणभय क्षय हूँ फट् स्वाहा। अनन्तघोरज्वर मरणभय कुष्ठ व्याधि  विनाशनाय नमः। शाकिनी डाकिनी - ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय नमः।अपस्मार भूत वेताल कूष्माण्ड सर्वग्रह  विनाशनाय नमः। मन्त्राकोष्ठ करालाय नमः।   सर्वापद् विच्छेदाय नमः। हुं हुं फट् स्वाहा।  आत्म मन्त्र सुरक्षणाय नमः। ह्रां ह्रीं हूँ नमो भूत डामर ज्वाला वश भूतानां द्वादश-भूतानां त्रयोदश भूतानां पञ्चदशडाकिनीनां हन हन दह दह नाशय नाशय एकाहिक  द्वयाहिक चतराहिक पञ्चाहिक व्याप्ताय नमः। आपादानत सन्निपात वातादि हिक्का कफादि कास श्वासादिकं दह दह छिन्धि  छिन्धि श्री महादेव निर्मित स्तम्भन मोहन
वश्याकर्षणोच्चाटन कीलन उद्वासन इति षट्कर्म विनाशनाय नमः। अनन्त वासुकि तक्षक कर्कोटक शंखपाल विजयपद्म महापद्म एलापत्र नाना नागानां कुलकादि विषं छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि प्रवेशय - शीघ्रं हुं हुं फट् स्वाहा। चौर मृत्युग्रह व्याघ्र
सर्पादि विषभय विनाशनाय नमः। मोहन  मन्त्राणामाकर्षण मन्त्राणां पर विद्या छेदन
मन्त्राणाम् ह्रां ह्रीं हूँ कुलि लीं लीं हुं क्षं कुँकुं हुं हुं फट् स्वाहा।
नमो नीलकंठाय नमः। दक्षाध्वर हराय नमः। श्री नीलकण्ठाय नमः। इति सप्तवारं पठेत्।
इतिरुद्रयामलेतन्त्रे श्रीनीलकंठस्तोत्रं समाप्तम्










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