मंत्र योग





इस इमेज को गूगल से लिया गया है

मंत्र योग का यह सिद्धांत है । की परमात्मा से भाव , भाव के नाम रूप और उसका विकार तथा विलासमय यह संसार है , इसलिए जिस क्रम से स्राष्टि हुई है उसके विपरीत मार्ग से ही लय होगा । ये निश्चित है । जब परमात्मा से भाव और भाव से नाम रूप दुवारा स्राष्टि हुई है । जिससे समस्त जीव बंधन में आ गये है । तब यदि मुक्ति लाभ करना हो तो प्रथम नाम रूप का सहारा लेकर , नाम रूप से भाव में और भाव से भावरूपी परमात्मा में चित्तव्रती के लय होने से मुक्ति होगी । नारद आदि महाऋषि ने इसलिए नाम रूप की साधना की जो विधियाँ बताई है । इसी का नाम मंत्र योग हैं । मंत्र योग में ध्यान और भक्ति योग भी आते हैं । इसमें प्राणायाम को छोड़ कर सात अंग है । चक्रों में मूलाधार , मणिपुर व आज्ञा सहित तीन चक्र हैं ।
हिन्दु जाति की मूर्ति पुजा और पीठ विज्ञान मंत्र योग के अनुसार ही सिद्ध होते हैं ।  मंत्र योग के ग्रन्थों के अनुसार उसके मुख्य रूप बतलाये जाते हैं । चंद्रमा की तरहा मंत्र योग भी सोलह कलाओं से पूर्ण हैं ।

   1.      भक्ति
   2.      शुद्धि
   3.      आसन
   4.      पंचांग सेवन
   5.      आचार
  6.      धारणा
  7.      दिव्यदेश सेवन 
  8.      प्राण क्रिया
  9.      मुद्रा
  10.  तर्पण
  11.  हवन
  12.  बलि
  13.  यज्ञ 
  14.  जप
  15.  ध्यान
  16.  समाधि

मंत्र योग में शुद्धि एक आवश्यक अंग है । शुद्धि  दो प्रकार की होती है ।
 1.  बाहय शुद्धि
 2.  अन्तर शुद्धि

बाहय शुद्धि तीन प्रकार की होती है ।
  1.  शरीर शुद्धि    2. स्थान शुद्धि     3. दिशा शुद्धि  ।  
  
शरीर शुद्धि भी सात प्रकार की होती हैं ।
  1-      मंत्र स्नान 
  2-      भौम स्नान
  3-      आग्नेय स्नान
  4-      मागव्य स्नान
  5-      दिव्य स्नान
  6-      वरुण्य स्नान
  7-      मानस स्नान

शुद्धि का फल :-बाहर की शुद्धि से आरोग्यता , आत्मप्रसाद  व इष्टदेव की कृपा तथा मन की शुद्धि से इष्टदेव का दर्शन और समाधि प्राप्त होती है ।

SHARE THIS
Previous Post
Next Post