स्वप्न विज्ञान



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वैशेषिक दर्शन में स्मृति – ज्ञान को पूर्व संस्कारों से जन्य माना गया है । स्वप्न भी पूर्व संस्कारों से ही होता । आपने आपने विषयों के ग्रहण के उपरांत इंद्रियों से मन जिन जिन विषयों का प्रत्यक्ष अनुभव करता हैं । वही स्वप्न कहलाता है ।

वात , पित्त , और कफ की विषमता से भी स्वप्न होते हैं ।

वात दोष से – आकाश , गगन , प्रथ्वी पर्यटन , भयानक सिंह , व्याघ्र आदि स्वप्न दिखाई देते है । 

पित्त दोष से --- अग्नि प्रवेश , अग्नि ज्वाला , कनक पर्वत ,बिजली आदि देखे जाते हैं ।

कफ दोष से – समुद्र में तैरना , नदी में नहाना , पानी की वर्षा , रजत पर्वतारोहण आदि ।

वेदान्त दर्शन में भी स्वप्न फलादेश के विषय में कहा गया हैं :-

श्रुति स्वप्न के फल को बताती है । जब कोई विशेषा कर्म करते हों और स्वप्न में स्त्री दर्शन होतो उससे अपने कर्म की सफलता माना चईए ।

ज्योतिष शास्त्र के  विद्वान कल्पद्रुम ग्रंथ में स्वप्न सात प्रकार के बताते हैं।

 द्रष्ट , 2. श्रुति  , 3. अनुभूत , 4. प्रार्थित , 5. कल्पित , 6. भाविक , 7. दोषज ।   
1.       जाग्रत अवस्था में देखी हुई वस्तुओं का स्वप्न देखना द्रष्ट कहलाता है ।
2.       प्राचीन या नवीन सुनी हुई बातों को देखना श्रुति कहा जाता है ।
3.       जाग्रत अवस्था में परीक्षित वस्तुओं का देखना अनुभूत स्वप्न होता हैं ।
4.       जाग्रत अवस्था में इच्छा की हुई वस्तुओं का देखना प्रार्थित स्वप्न होता हैं ।
5.       कल्पना की हुई वस्तुओं का देखना कल्पित स्वप्न है ।
6.       देखी सुनी हुई बातों से विलक्षण मंत्राभ्यासादी से जो स्वप्न दिखाई देते है , उन्हें भाविक कहते है ।
7.       वात , कफ , पित्त दोष से जो स्वप्न होते हैं उनको दोषज कहते है ।

शुरू के पांचों स्वप्न ज़्यादातर झूठ होते हैं । अंतिम दोनों प्रकार के स्वप्न सत्य होते हैं ।

आयुर्वेद में स्वप्नविचार  --- वात ,कफ , पित्त दोषो से भिन्न – भिन्न प्रकार के संस्कारों के उदय से स्वप्न देखे जाते हैं । जिन्हें सुश्रुति संहिता के सूत्र के उन्नतिसवें अध्याय में इस प्रकार बताया गया है  है । जो कोई रोगी अपने भाई बंधुओं को रोगी देखता है । - तेल से पुते हुये अपने शरीर को देखता है । ऊँट , सर्प , गधा , सूअर , और भैस से घिरा हुआ दक्षिण दिशा में जाता हुआ देखता है । आदि आदि देखता है । तो रोगी होता हैं ।

लाल रंग का स्वप्न किसी भी प्रकार का हो वह अशुभ ही होता है । केवल लाल कच्चा मांस तथा लाल चन्दन को देखना शुभ होता है । सफ़ेद वर्ण के सभी स्वप्न शुभ होते हैं । तथा कपास , भस्म तथा दही का देखना अशुभ है । काले वर्ण के स्वप्न भी अशुभ है । केवल भूमि , सोना , काला ब्राह्मण , काला देवता और हाथी देखना शुभ है । चरक संहिता के इन्द्रिय स्थान में शुभाशुभ स्वप्नों की गणना सुश्रुत की गणना से मिलती जुलती है ।

वैदिक ग्रंथो में भी स्वप्न के विषय में बहुत विचार किया गया है । अथर्ववेद के 16 , 17 ,18 काण्डों में अनेक सूक्तों में स्पष्ट रूप से स्वप्न का अनिष्टकारी प्रभाव बताकर उससे रक्षा के उपाये बतायें हैं । इनमें कई एक के पाठ ऋग्वेद में भी आये है । अर्ववेद के 16 वें काण्ड के 5 पयार्य सूक्त इस विषय को स्पष्ट करता है 

जब कोई साधक दीक्षा ग्रहण या प्रयोगनुष्टान किसी कार्य सिद्धि के लिये करता है तब उसकी सिद्धि असिद्धि  का ज्ञान स्वप्न मंत्रों के अभ्यास द्वारा कराना तंत्र ग्रन्थों में बताया गया है । उस समय में जिन जिन स्वप्नों का स्वरूप एवं फल जैसा बताया होता है । उसके विचार द्वारा सिद्धि का निर्णय किया जाता है । स्वप्न काल में सिद्ध या देवता के द्वारा प्राप्त मंत्रों को स्वयं सिद्ध माना जाता है । स्वप्नकाल में प्रसादभिमुख देवता का वरदान भी प्राप्त होता है और वह सर्वथा सत्य होता है ।

 शक्ति संगम तंत्र सुन्दरी खण्ड तृतीय पटल में श्री देवीजी ने श्री शिव जी से पूछा की आपने स्वप्न मंत्रों के विषय बताने को पूर्व में कहा था । यदि आप का इस विषय में हमारा अधिकार समझते है तो कृपा कर उसे प्रकट करें । शिवजी ने मंत्रों के अनेक भेद बताने के बाद स्वप्न मंत्रों के भेद और कार्य को इस प्रकार बताया गया है ।

स्वप्न मंत्र तीन चक्रों में विभक्त है । विराट चक्र , तांडव चक्र , और त्रिपुरा चक्र  ।

जिन मंत्रो में नमः पद हो उन्हें विराट चक्र में जानना चाहिए  , अंजन सिद्धि गुटिका ,गुप्ती , आज्ञा सिद्धि को वे प्रदान करते हैं ।  तांडव चक्र के मंत्र  हूं फट  आदि पदों से युक्त होते हैं ।
खड़ग , वेताल सिद्धि , परकाय प्रवेश , चराचर में गति , अणिमादी सिद्धियां उनसे प्राप्त होती है ।
त्रिपुरा चक्र में मंत्र  स्वाहा   पदान्त होते हैं । उनसे सर्व मनोरथ सिद्धि , कलेश का अभाव और पाष्टि सिद्धिश्वर साधक होता हैं । स्वप्न लब्ध मंत्रों में ऋषि छन्द आदि का विनियोग न होने से जप मात्र से ही सिद्धि होती है । या शिव ऋषि गायत्री छन्द चिदरूपिणी देवता ऐसा विनियोग कर लेना चाहिए । कीलक आदि इसमें नहीं होता , स्वप्न मार्ग से सिद्धि होने से इन्हें स्वप्न मंत्र कहते हैं ।।

लिखें में अगर किसी प्रकार की त्रुटि हो गाई हो उसको क्षमा करें तथा आपने विवेक से काम लें । 


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22 May 2020 at 10:37

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