बारह भावो में शनि का फल - प्रथम भाव



प्रथम भाव में अगर शनि हो तो वह अपनी महादशा में हानि फल देता हैं , लेकिन तुला व मकर लग्न का हो तो फल अच्छा होता हैं । वैधनाथ के अनुसार ऐसा जातक कई प्रकार की व्याधि से ग्रस्त होता हैं । उसका कोई अवश्य ही दोषयुक्त होता हैं ।
1.   प्रथम भाव का शनि जातक को जीवन भर दुख देता हैं । जातक अपनी ही बात पर हमेशा अटल                                                    रहने वाला , स्वहित साधन में तल्लीन रहता हैं । अगर शनि शुभ संयोग युक्त होतो भाग्य शीघ्र अपना प्रभाव दिखाता हैं ।
 ग्रहमंडल में शनि विचित्र और दूरस्थ ग्रह हैं। इसकी स्थिति का प्रभाव इसके परिणामों पर स्पस्ट होता हैं । एकांतिकता, आलस्य , उदासिनता, शनि के स्वाभाविक लक्षण हैं । -- पाश्चात्य ज्योतिषी कटवे के अनुसार मेष , सिंह , धनु , कर्क , मीन और व्रश्चिक राशियो में स्थित शनि – जातक की आजीविका , कार्यालयो से संबन्धित होता हैं । पद की उन्नति उचधिकारियों से संघर्ष करते - करते होती हैं । जीवन में अधिकार भावना प्रचुर होती हैं । प्रायः नौकरी को उचित मानने वाले जातक ऐसे शनि से प्रभावित होते हैं । उनका दांपत्य जीवन कलहपूर्ण होता हैं ।

2.   ऐसे जातक का भाग्योदय भागीदारी से होता हैं । पैत्रक संपति में विवाद होता हैं ।
26वे वर्ष में स्वतंत्र व्यापार आरंभ होगा , 36वे वर्ष में सुनिश्चित भाग्योदय होता हैं ।
56 वर्ष तक जीवन चिंता आदि से रहित रहता हैं । 25,27, 32वे वर्ष अप्रिय होते हैं ।
यदि प्रथम भाव में स्थित शनि – शुक्र से दूषित हो तो प्रभावों में परिवर्तन होता हैं ।
दाम्पत्य कलह , पत्नी की मृत्यु , धन और पुत्र में किसी एक की क्षति , व्यवसाय में विघ्न अथवा हानि आदि इसके कुफ़ल हैं । 

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