चतुर्थ भाव में शनि का प्रभाव


   1.    यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में होतो जातक गृहहीन और माता नहीं होती या उसको कष्ट होता हैं ।  ऐसा व्यक्ति बचपन में रोगी भी रहता है । यह भाव सुख का भाव माना जाता हैं । अतः इधर शनि बैठ कर सुख को नष्ट करता है ।  
इसी कारण जातक सदा दुखी रहता है  ।
   2.    जातक तथा उसके माता – पिता के मध्य हमेशा कलह रहती हैं । जातक बंधु विरोध तथा झूठे आरोपो से दुखी रहता है ।
   3.    चौथे भाव में शनि पित्त तथा वायु विकार से ग्रस्त रखता है  ।
   4.    चौथे घर में शनि से अनुमान लगाया जाता है की माता की म्रत्यु पिता से पहले होती है  ।
   5.    अभिभावक से जातक के विचार और सोच एक दूसरे से विरुद्ध होते है  । 
   6.    मेष , व्रष , सिंह , तुला , धनु , व्रश्चिक , मीन और मिथुन वालों को सरकारी सेवाए प्रदान करता है ।
   7.     जातक की रुचि वैज्ञानिक विषयों में होती हैं ।
   8.    जातक को व्यापार के प्रारम्भ में अनेक घोर संकट प्रकट होते है ।
   9.    जातक का 36वें तथा 56वें  वर्ष उत्तम होते है ।   
  10.  पश्चिम दिशा प्रगति के अनुकूल होती है ।
  11.   शनि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि पर होतो दोषो का परिहार हो जाता है ।
पेत्रक स्थान त्यागने पर भी जातक की दुर्भाग्य से मुक्ति नहीं मिल पाती । 

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